दिल्ली की एक अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए कहा, ‘जो सच हो सकता है और जो सच होना चाहिए, उसके बीच बहुत लंबा अंतर है। आपराधिक न्यायशास्त्र का यह मुख्य सिद्धांत है कि आरोपी को निर्दोष माना जाता है।’
दहेज की मांग को लेकर पत्नी को खुदकुशी के लिए उकसाने के 12 साल पुराने एक मामले में नई दिल्ली की एक अदालत ने आरोपी शख्स को बरी कर दिया है। फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष उसके अपराध को साबित करने के लिए ठोस या पुख्ता सबूत पेश करने में विफल रहा है।
सतेंद्र गौतम पर दहेज के लिए अपनी पत्नी पूनम को परेशान करने और उसकी पिटाई करने का आरोप था, जिसके कारण नवंबर 2011 में उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। इस मामले की सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शरद गुप्ता की अदालत में हुई।
मृतका के माता-पिता की गवाही सहित अपने समक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असमर्थ रहा कि महिला के साथ क्रूरता की गई या उसे दहेज के लिए परेशान किया गया।
हाल ही में दिए गए आदेश में अदालत ने कहा, ‘यह बात विशेष रूप से तब और अधिक स्पष्ट हो जाती है, जब उसके परिवार के सदस्यों को मृतका और आरोपी के बीच विवाह के बारे में भी जानकारी नहीं थी।’ इसने अभियोजन पक्ष के उस बयान पर गौर किया, जिसमें महिला और आरोपी के बीच उसकी मौत से एक दिन पहले झगड़ा होने की बात कही गई थी।
हालांकि, मृतक की दोस्त स्नेहा, जिसने झगड़े के बारे में गवाही दी थी, को एक उत्कृष्ट गवाह नहीं माना गया क्योंकि कार्यवाही के दौरान उसने अपना रुख बदल लिया था। जज ने कहा, ‘ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं है जिससे पता चले कि आरोपी की हरकतों ने मृतक पूनम को अपनी जान लेने के लिए उकसाया हो या उसने दूसरों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने की साजिश रची कि व्यक्ति आत्महत्या कर ले या आरोपी के किसी कृत्य या चूक ने मृतक को उकसाया, जिसके परिणामस्वरूप उसने आत्महत्या की।’
सुनवाई के दौरान जज ने कहा, ‘पति-पत्नी के बीच झगड़े घरेलू लड़ाई-झगड़ों का एक सामान्य हिस्सा हैं और रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि मृतक के साथ झगड़ा करते हुए आरोपी का इरादा उसे आत्महत्या के लिए उकसाने था।’
अदालत ने कहा कि चूंकि अभियोजन पक्ष ठोस या पुख्ता सबूत पेश करके आरोपी के अपराध को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है, इसलिए उसे दोषमुक्त किया जाना चाहिए। अदालत ने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा, ‘जो सच हो सकता है और जो सच होना चाहिए, उसके बीच बहुत लंबा अंतर है। आपराधिक न्यायशास्त्र का यह मुख्य सिद्धांत है कि आरोपी को निर्दोष माना जाता है।’
बता दें कि नजफगढ़ पुलिस थाने ने फरवरी 2012 में व्यक्ति के खिलाफ FIR दर्ज की थी।